दादाजी धाम पर बड़े दादाजी की बरसी पर समाधि पर दोपहर 3:00 बजे गंगाजल पंचामृत से स्नान मालिश के साथ रात्रि 8:00 बजे महा आरती का होगा आयोजन,
खंडवा।। खंडवा के दादाजी धाम पर शुक्रवार बड़े दादा जी की बरसी मनाई जाएगी, 3 दिसंबर 1930 बुधवार अगहन सुदी शुक्ल त्रयोदशी की तिथि मे अंतिम महाआरती करके दादाजी को विदाई दी गई थी, समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि प्रतिवर्ष अगहन शुक्ल की तेरस के दिन दादाजी की बरसी कार्यक्रम आयोजित होता है, बड़ी संख्या में दादाजी भक्त दादाजी धाम दर्शन करने पहुंचते हैं, बड़े दादा जी की बरसी के अवसर पर प्रतिदिन अनुसार दादाजी धाम पर प्रातः 4:00 बजे समाधि स्नान, प्रातः 5:00 बजे मंगल आरती, प्रातः 8:00 बजे आरती, प्रातः 9:30 बजे सेवा के साथ विशेष रूप से दोपहर 3:00 बजे सेवादारों एवं श्रद्धालुओं द्वारा दादाजी की समाधि पर गंगाजल एवं पंचामृत से स्नान एवं मालिश रात्रि 8:00 बजे महाआरती रात्रि 10:00 बजे सेवा पश्चात बड़ा हवन आयोजित होगा,श्री बड़े दादाजी स्वामी केशवानंद जी महाराज अपने दल बल, साधु संतों के साथ खंडवा में विराजित थे। शाम का वक्त था। दादाजी महाराज ने थोड़ी सी मूंग दाल की खिचड़ी खाई और तख्त पर लेट गये। अगले दो दिन दशमी और एकादशी ऐसे ही बीती। द्वादशी की सांझ भी हो चली। दिन मंगलवार दो दिसंबर की शाम…….
अचानक पुलिस अधिकारियों ने आकर श्री बड़े दादाजी के स्वास्थ्य पर चिंता प्रगट की। उन्होंने बताया कि अभी अभी एक अजनबी नग्न साधु ने कोतवाली में आकर स्पष्ट बताया है कि दादाजी समाधिस्थ हो चुके है एवं उनका परिवार बेफिक्र बैठा है। वह साधु कौन था उन्हें भी नहीं पता ?यह बात डरते डरते भक्तों ने छोटे दादाजी महाराज को बताई। चारों तरफ सन्नाटा सा छा गई। भजन कीर्तन बंद हो गया। छोटे दादाजी की आज्ञा से जब चंवर डुलाने वाले ने दुलाई हटाई तो समय ठहर सा गया। श्री दादाजी महाराज का चेहरा कृष्णवर्ण हो गया था। कैलाशपति श्री केशवानंद जी महाराज इहलोक त्यागकर कैलाश गमन कर चुके थे। उत्सव शोक में बदल गया।देशभर में यह खबर फैल गई। जिस जगह दादाजी ने अपनी यात्रा को विश्राम दिया, उस निजी भूमि को छोटे दादाजी महाराज ने रातोंरात खरीद कर समाधि की तैयारी की। 3 दिसंबर 1930 दिन बुधवार.. अगहन सुदी त्रियोदषी की तिथि में अंतिम महाआरती करके दादाजी को विदाई दी गई।
इस तरह स्वामी केशवानंद जी, श्री दादाजी धूनीवाले, साईखेड़ा वाले दादा, डंडे वाले अवधूत संत, बच्चो के प्रिय रामफल दादा, कभी माधव तो कभी कृष्णानंद ने खंडवा में सदा सदा की अपनी यात्रा को विराम दिया।